SHAYARI
सारे 'मसरूफ' हैं यहाँ 'दूसरों' की 'कहानियाँ' जानने में..
इतनी 'शिद्दत' से 'खुद' को पढ़ते तो 'खुदा' बन जाते..
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ख़ामोशी की तह में छुपा लो सारी उलझनों को,
शोर कभी मुश्किलों को आसान नहीं करते
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चिंता ने चिता से मुस्कुरा कर कहा
तू मुर्दे को जलाती है मैं
जिन्दों को
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छोड़ दिया उसने मुझे गरीब कहकर
उसे पता ही नहीं प्याज़ का खेत है मेरा
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मोहरे हैं हम यहाँ, ये ज़िंदगी की बिसात है
एक कदम पे शह है, एक कदम पे मात है
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सिमटते जा रहे हैं दिल और, ज़ज्बातों
के रिश्ते,
सौदा करने में जो माहिर है,बस वही
कामयाब है
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चलते देखा है लोगो को अक्सर अपनी चाल से तेज़ !
पर वक्त और तक़दीर से आगे कभी कोई निकल नहीं पाया !!
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रख हौसला वो मंजर भी आयेगा;
प्यासे के पास चल के समुन्दर भी आयेगा!
थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर;
मंजिल भी मिलेगी और मज़ा भी आयेगा
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स्याही सुख भी नहीं पाती अखबारों की
नई खबर आ जाती है बलात्कारो की
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ख़ैरियत में तुझसे मिलने आएगा ना कोई भी
ऐ दिल-ए-नादां तुझे बीमार होना चाहिए
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महफ़ूज़ रख,बेदाग़ रख, मैली ना कर ताज़िन्दगी
मिलती नहीं इंसान को किरदार की चादर नई
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ख़ैरियत में तुझसे मिलने आएगा ना कोई भी
ऐ दिल-ए-नादां तुझे बीमार होना चाहिए
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कभी ज़ुल्फो के इन सायों में मेरी शाम हो जाये !
मिरा भी आशिको
की दुनियाँ में नाम हो जाये !!
गिला तो ये है तुम
आते नहीं छत पे कभी मेरे !
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे
जाम हो जाये !!
लक्ष्मण दावानी
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हम तुम्हे चाहते हैं तो ये मेरी फितरत है !
तुम भी मुझे उतना ही चाहो ये ज़रूरी तो नहीं !!
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खैरियत नहीं पूछती मगर खबर सब रखती है
मैंने सुना है वो मुझ पर नजर रखती है
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