ROOH-E-SHAYARI
तेरी यादों से महके सब सांझ
सकारें बांध लिये।
हमने फूल खिलाने वाले मौसम
सारे बांध लिये।
तुम्हे बांध कर इन बांहों
में हमको यूँ महसूस हुआ।
हमने अपने आलिंगन में चाँद
सितारे बांध लिये।।
पंकज अंगार
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खामोशी' बहुत अच्छी है
कई रिश्तों की 'आबरू' ढक लेती है...
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जब ''क्या'' से बढ़कर ''कौन'' हो जाता है ;
तब रिश्ता अक्सर मौन हो जाता है ।
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तो दीवानो ने उनके हाथ दुनिया बेच दी होगी !!
~ हुज़ूर साहब
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बूढ़ा दिसम्बर जवाँ जनवरी के कदमों में बिछ रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को बीसवां साल लग रहा है
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कदम यूं ही डगमगा गए रास्ते में,
वैसे संभलना हम भी जानते थे
ठोकर भी लगी उस पत्थर से,
जिसे हम अपना मानते थे
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वाइज़े मोहतरम देखो थोड़ी पिया करो !
वरना पीरे मुगां भी उछल जाएंगे !
हम शराबी तो कुछ तुमसे कहते नहीं !
ग़ैर अगर तुमको देखेंगे तो जल जाएंगे !!
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कोई तबील उम्र भी यूँ ही जिया नसीम !
कोई ज़रा सी उम्र में इतिहास रच गया !!
~ मंगल नसीम
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आप इक लम्हे की दुहाई देते हैं !!
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फ़क़ीरों से मिलें तो झुक कर रास्ता दे दें !
ये हैं अल्लाह के बन्दे न जाने क्या दुआ दे दें !
~ मंगल नसीम
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सालों गुजर गये हैं मगर फिर भी कमाल है!!
इस दिल में अब तलक जिंदा उसका ख्याल है!!
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कितना प्यार है तुमसे, वो लफ्ज़ों के सहारे कैसे बताऊँ,
महसूस कर मेरे एहसास को, अब गवाही कहाँ से लाऊँ
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गुमशुदा रहते हुए नाम कमाना था मुझे !
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खामोशी' बहुत अच्छी है
कई रिश्तों की 'आबरू' ढक लेती है...
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जब ''क्या'' से बढ़कर ''कौन'' हो जाता है ;
तब रिश्ता अक्सर मौन हो जाता है ।
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मैं अक्सर हार जाता हँ किसी
की जीत की खातिर
मेरा भी अपना तरीका है किसी
से जीत जाने का
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सबा लेकर चमन में उनकी ख़ुश्बू जब गई होगी !तो दीवानो ने उनके हाथ दुनिया बेच दी होगी !!
~ हुज़ूर साहब
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बूढ़ा दिसम्बर जवाँ जनवरी के कदमों में बिछ रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को बीसवां साल लग रहा है
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कदम यूं ही डगमगा गए रास्ते में,
वैसे संभलना हम भी जानते थे
ठोकर भी लगी उस पत्थर से,
जिसे हम अपना मानते थे
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वाइज़े मोहतरम देखो थोड़ी पिया करो !
वरना पीरे मुगां भी उछल जाएंगे !
हम शराबी तो कुछ तुमसे कहते नहीं !
ग़ैर अगर तुमको देखेंगे तो जल जाएंगे !!
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कोई तबील उम्र भी यूँ ही जिया नसीम !
कोई ज़रा सी उम्र में इतिहास रच गया !!
~ मंगल नसीम
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कोई फूल धूप की पत्तियों में
हरे रिबन से बंधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ
जिसे ले गई अभी हवा वे वरक़
था दिल की किताब का
कही आँसुओं से मिटा हुआ कहीं
आँसुओं से लिखा हुआ
कई मील रेत को काटकर कोई मौज
फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है
नदी के पास खड़ा हुआ
कोई फूल धूप की पत्तियों में
हरे रिबन से बंधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ
जिसे ले गई अभी हवा वे वरक़
था दिल की किताब का
कही आँसुओं से मिटा हुआ कहीं
आँसुओं से लिखा हुआ
कई मील रेत को काटकर कोई मौज
फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है
नदी के पास खड़ा हुआ
मुझे हादिसों ने सजा-सजा के
बहुत हसीन बना दिया,
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का
हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ
वही शहर है वही रास्ते वही
घर है और वही लान भी
मगर इस दरीचे से पूछना वो
दरख़्त अनार का क्या हुआ
वही ख़त के जिसपे जगह-जगह दो
महकते होंठों के चाँद थे
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर
तहे-गर्द होगा दबा हुआ
मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर
इस शरर की बिसात क्या
ये चिराग कोई चिराग है जला
हुआ न बुझा हुआ
~ बशीर बद्र
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गर याद न करें आप तो ख़्वाबों
में आएंगे हम
रूठ जाएंगे तो मनाएंगे हम
दोस्त हैं आखिर हम, कोई साया नहीं
जो अंधेरों में साथ छोड़
जाएंगे हम :
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बेखुदी में तो सारी उम्र गुज़र जाती है !आप इक लम्हे की दुहाई देते हैं !!
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फ़क़ीरों से मिलें तो झुक कर रास्ता दे दें !
ये हैं अल्लाह के बन्दे न जाने क्या दुआ दे दें !
~ मंगल नसीम
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सालों गुजर गये हैं मगर फिर भी कमाल है!!
इस दिल में अब तलक जिंदा उसका ख्याल है!!
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कितना प्यार है तुमसे, वो लफ्ज़ों के सहारे कैसे बताऊँ,
महसूस कर मेरे एहसास को, अब गवाही कहाँ से लाऊँ
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लब-ए-ख़ामोश का सारे जहाँ
में बोलबाला है,
वही महफूज़ है यहाँ जिसकी
जुबां पे ताला है.
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उम्र की दहलीज पर जब सांझ की आहट होती है
तब ख्वाहिशें थम जाती हैं और
सुकून की तलाश बढ़ जाती है।
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मेरी शोहरत के तकाज़े ही अलग थे ताबिश !गुमशुदा रहते हुए नाम कमाना था मुझे !
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जो मिला हमने मिलाया हाथ कर ली दोस्ती !
कौन दुशमन था हमारा अपने दुशमन हम रहे !!
~असद अजमेरी
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