ROOH-E-SHAYARU

ना जियो धर्म के नाम पर,
ना मरो धर्म के नाम पर,
इंसानियत ही है धर्म वतन का
बस जियों वतन के नाम पर
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अपने खिलाफ बातें बड़ी ख़ामोशी से सुनता हूँ मैं,
जवाब देने का ज़िम्मा मैंने वक्त को दे रखा है.
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ईश्वर जिम्मेदारी उसी को देता हैं,
जो निभाने के क़ाबिल होता है ।
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अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा,
जहां लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा हैं.
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कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।
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ख़ुद मझधार में होकर भी,
जो औरों का साहिल होता है ।
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उम्र थका नहीं सकती,
ठोकरे गिरा नहीं सकती,
अगर जीतने की ज़िद हो तो,
परिस्थितियाँ हरा नही सकती !
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थामे रही किसी की दोआऐ तमाम उम्र !
ठोकर के बावजूद असद हम गिरे नहीँ !!
- असद अजमेरी
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नादान आईने को क्या खबर
कुछ चेहरे चेहरे के अन्दर भी होते हैं
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तूने फैसले ही फ़ासले बढ़ाने वाले किये है !
वरना कुछ ना था तुझसे ज़्यादा करीब मेरे !!
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कभी कभी धागे बड़े कमज़ोर चुन लेते है हम !
और फिर पूरी उम्र गाँठ बाँधने में ही निकल जाती है
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गरीबी रातभर लड़ती रही सर्द हवाओं से
अमीरी ने सुबह उठकर कहा वाह क्या मौसम आया है
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आँखों पर तेरी निगाहों ने दस्तख़त क्या किए
हमने दिल की वसीयत तेरे नाम कर दी
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