ROOH-E-SHAYARI
लेकर के मेरा नाम मुझे कोसता तो है,
नफरत ही सही, पर वह मुझे सोचता तो है।
- - - -
"ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल होती हैं"
-----------------------------------------------
सलीके से आकार दे कर
रोटियों को गोल बनाती हैं
अौर अपने शरीर को ही
आकार देना भूल जाती हैं
ये गृहणियाँ भी
थोड़ी पागल सी होती हैं।।
ढेरों वक्त़ लगा कर घर का
हर कोना कोना चमकाती हैं
उलझी बिखरी ज़ुल्फ़ों को
ज़रा सा वक्त़ नही दे पाती हैं
ये गृहणियाँ भी
थोड़ी पागल सी होती हैं।।
किसी के बीमार होते ही
सारा घर सिर पर उठाती हैं
कर अनदेखा अपने दर्द
सब तकलीफ़ें टाल जाती हैं
ये गृहणियाँ भी
थोड़ी पागल सी होती हैं ।।
खून पसीना एक कर
सबके सपनों को सजाती हैं
अपनी अधूरी ख्वाहिशें सभी
दिल में दफ़न कर जाती हैं
ये गृहणियाँ भी
थोड़ी पागल सी होती हैं।।
सबकी बलाएँ लेती हैं
सबकी नज़र उतारती हैं
ज़रा सी ऊँच नीच हो तो
नज़रों से उतर ये जाती हैं
ये गृहणियाँ भी
थोड़ी पागल सी होती हैं।।
एक बंधन में बँध कर
कई रिश्तें साथ ले चलती हैं
कितनी भी आए मुश्किलें
प्यार से सबको रखती हैं
ये गृहणियाँ भी
थोड़ी पागल सी होती हैं।।
मायके से सासरे तक
हर जिम्मेदारी निभाती है
कल की भोली गुड़िया रानी
आज समझदार हो जाती हैं
ये गृहणियाँ भी.....
वक्त़ के साथ ढल जाती हैं।।
मै तनहॉ था,मै तनहा हूँ तुम आओ तो क्या?
ना आओ तो क्या?
जब देखने वाला कोई नही बुझ
जाओ तो क्या?
जल जाओ तो क्या??
- - - -
उम्र पचास हुई है, शक्ल
है लेकिन तीस के जैसी
मुझको uncle कहने वाले, धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
बेटे के कॉलेज गया तो, टीचर देख के मुझ को मुस्कुराई
बोली क्या मेंटेंड हो मिस्टर, पापा
हो, पर लगते हो भाई
क्या बतलाऊँ उसने फिर, बातें की मुझ से कैसी कैसी
मुझको uncle कहने वालो, धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
जूली बोली, सेकंड हैंड हो, लेकिन फ़्रेश के भाव बिकोगे
बस थोड़ी सी दाढ़ी बढ़ा लो, कार्तिक
आर्यन जैसे दिखोगे
अब भी बहुत जोश है तुम में, हालत
नहीं है ऐसी वैसी
मुझको uncle कहने वालो, धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
बीवी सोच रही है शौहर, मेरा कितना अच्छा है जी
पढ़ती नहीं गुलज़ार साहेब को, दिल तो
आख़िर बच्चा है जी
नीयत मेरी साफ़ है यारो, हरकतें हैं कुछ ऐसी वैसी
मुझको uncle कहने वालो, धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
कितने जंग लड़े और जीते हैं इन गुज़रे सालों में
दो-एक झुर्रियाँ गालों में हैं, थोड़ी
सफ़ेदी बालों में
कंधे मगर मज़बूत हैं अब भी, कमर भी
सॉलिड पहले जैसी
मुझको uncle कहने वालो, धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
जीने का जज़्बा क़ायम हो तो, उम्र
की गिनती फिर फ़िज़ूल है
अपने शौक़ को ज़िंदा रखो, जीने
का बस यही उसूल है
ज़िंदादिली का नाम है जीवन, परिस्थितियाँ
हों चाहे जैसी
मुझको uncle कहने वालो, धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
- - - -
Comments
Post a Comment