ROOH-E-SHAYARI
कुछ तो खास बात है मेरी मेहमान नवाजी में..
उदासी आई ठहर गई दर्द
आया रुक गया..
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बेफ्रिक से थे बालों की सफेदी को देखकर,
नींद उडा दी किसी ने "अच्छे लगते हो कहकर
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हम बेकुसूर लोगो की
देखो तो सादगी !
बैठे हैं,शर्म,सार ख़तायें किये
बग़ैर !!
- असद
अजमेरी
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'हवा ख़िलाफ़ चली, तो चराग़ ख़ूब जला,
ख़ुदा भी होने के क्या-क्या सुबूत देता है ||
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कभी तुम नाराज़ हुए तो हम झुक
जाएंगे
कभी हम नाराज़ हो तो आप गले
लगा लेना
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शामिल थे जिंदगी में कुछ सस्ते लोग
मगर,सबक
बहुत महंगे दे कर गये।
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यक़ीनन इस तरह रस्मे मोहब्बत हम निभाते हैं !
कभी उनको मनाते हैं कभी हम रूठ जाते हैं !! - आशुतोष पाल ( आशू )
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उम्र पचास पार है लेकिन
शक्ल हमारी तीस के जैसी
मुझको uncle कहने वाले,
धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
बेटी के कॉलेज गया तो,
टीचर देख मुझे मुस्कुराई
बोली क्या मेंटेंड हो मिस्टर,
पापा हो, पर लगते हो भाई
क्या बतलाऊँ उसने फिर,
बातें की मुझ से कैसी कैसी
मुझको uncle कहने वालो,
धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
पडोसन बोली, सेकंड हैंड हो,
लेकिन फ़्रेश के भाव बिकोगे
बस थोड़ी सी दाढ़ी बढ़ा लो,
कार्तिक आर्यन जैसे दिखोगे
अब भी बहुत जोश है तुम में,
हालत नहीं है ऐसी वैसी
मुझको uncle कहने वालो,
धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
बीवी सोच रही है शौहर,
मेरा कितना अच्छा है जी
पढ़ती नहीं गुलज़ार साहेब को,
दिल तो आख़िर बच्चा है जी
नीयत मेरी साफ़ है यारो
नही हरकतें ऐसी वैसी
मुझको uncle कहने वालो,
धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
कितने जंग लड़े और जीते हैं
इन गुज़रे सालों में है
दो-एक झुर्रियाँ गालों में हैं,
और सफ़ेदी बालों में है
इरादे मगर मज़बूत हैं अब भी,
उमंग भी सॉलिड पहले जैसी
मुझको uncle कहने वालो,
धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
जीने का जज़्बा क़ायम हो तो,
उम्र की गिनती फिर फ़िज़ूल है
अपने शौक़ को ज़िंदा रखो,
जीने का बस यही उसूल है
ज़िंदादिली का नाम है जीवन,
परिस्थितियाँ हों चाहे जैसी
मुझको uncle कहने वालो,
धत्त तुम्हारी ऐसी तैसी
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समय का बस आप मज़ा लीजिए,
क्या कुछ छूटा परवाह न कीजिए।
जो है बस उसे भर कर जिएं
लुत्फ़ ज़िंदगी का उठा लीजिए।
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जब देखा खुद को आइने में,
थोड़ा घबरा गई थी मैं ।
और जब बन संवर गई ,
खुद ही शरमा गई थी मैं ।
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इक नतीजा इश्क़ का ये भी निकल गया
हमारा तीर आख़िर हमी पर चल गया
बना वो हमसफ़र या न बन सका
दिल लेकर हमारा वो तो निकल गया
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भरे बाज़ार से अक्सर मैं ख़ाली हाथ लौट आता हूँ,
कभी ख्वाहिश नहीं होतीं तो कभी पैसे नहीं होते।
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माना कि जिंदगी की राहें आसान नहीं है
मगर मुस्करा के चलने में कोई नुक्सान नहीं
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तुझसे मिलकर मेरी हस्ती बचती भी तो कैसे
कभी दरिया भी बचे हैं मिलके समन्दर के वज़ूद में
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ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
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लफ्ज पूरे “ढाई”ही थे।
कभी 'प्यार' बन गए तो कभी 'ख्वाब'।
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