ROOH-E-SHAYARI

एक पल में ले गई सारे ग़म ख़रीद कर,
कितनी अमीर होती है ये बोतल शराब की ।।
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सब्र करने पर आऊं तो मुड़ कर भी न देखूं  
अभी तुमने देखा ही नहीं मेरा पत्थर होना
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कभी इनका हुआ हूँ मैं कभी उनका हुआ हूँ मैं !
खुद के लिए कोशिश नहीं की मगर सबका हुआ हूँ मैं !!
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मुमकिन है मेरे किरदार में बहुत सी कमियां होगी
पर शुक्र है किसी के जज्बात से खेलने का हुनर नही आया
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जाते ही शमशान में मिट गयी सब लकीर,
पास पास ही जल रहे थे राजा और फ़क़ीर !
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अपनी शख्शियत की क्या मिसाल दूँ दोस्तों
ना जाने कितने मशहूर हो गये, मुझे बदनाम करते करते
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गोपालदास "नीरज"
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा
एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली
और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ
हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

माँग भर चली कि एक जब नई-नई किरन
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
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अब कौन रोज रोज ख़ुदा ढूंढे,
जिसको ना मिले  वही ढूंढे।
रात आयी है सुबह भी होगी,
आधी रात में कौन सुबह ढूंढे।
ज़िंदगी है जी खोल कर जियो,
रोज रोज क्यों जीने की वजह ढूंढ़े।
चलते फिरते पत्थरों के शहर में,
पत्थर खुद पत्थरों में भगवान ढूंढ़े।
धरती को जन्नत बनाना है अगर,
हर शख्स खुद में पहले इंसान ढूंढे
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कुछ फासले ऐसे भी होते है,जो तय नहीं होते,
मगर नज़दीकियां कमाल की रखते हैं.
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एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें ! 
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं !
~फ़िराक़ गोरखपुरी
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सादगी ते हमरी ज़रा देखिये
 ऐतबार आपके वादे पर कर लिया
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खिलौने बेचने वाले ये मज़दूरों की बस्ती है !
यहाँ बच्चे तो रहते हैं मगर बचपन नहीं रहता !!
~असद अजमेरी
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वो दोस्त बनके मेरे साथ में रहा बरसों !
यही दोआ है के तन्हाई ना सताये उसे !!
~असद अजमेरी
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मुझे नजर अंदाज करना है तो शिद्दत से करना,
नजर से नजर मिल गई तो अंदाज़ बदल जायेगा।
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जिनसे अक्सर रुठ जाते है हम,  
असल में उनसे ही रिश्ते गहरे होते है
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नज़रों मे समा जाओ इस दिल मे रहा करना !
फूलों की तरह दिल के गुलशन मे खिला करना !!
इस दिल को बसा रखना तुम अपनी मोहब्बत से !
तुम एरे ख़यालों मे हर वक़्त रहा करना !!
~ हुज़ूर साहब
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प्रेम सकल हो, भाव अटल हो, मन को मन की आशा हो..
बिन बोले जो व्यथा जान ले, वो अपनों की परिभाषा हो..
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