SHAYARI

निकलूं अगर मयखाने से तो, शराबी ना समझना दोस्त,
मंदिर से निकलता हर शख्स भी तो भक्त नहीं होता !
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सहने वाले को अगर सबर आ जाए तो
कहने वाले की औकात दो टके की रह जाती है
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किसी पर जान लुटानी थी, सो लुटा आया,
जरा सी बात पर, किस किस का मशवरा लेते.
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गुज़र गया आज का दिन भी यूँ ही बेवजह,
ना मुझे फुरसत मिली ना तुझे ख़्याल आया।
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कभी जो थक जाओ तुम दुनिया की महफिलों से,
हमें आवाज दे देना हम अकसर अकेले होते हैं।
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ख़ुद को पढ़कर देख लो,सुखी रहोगे आप।
दोष गिनाओ और में,पाओगे संताप।
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ऐब भी बहुत हैं मुझमें, और खूबियाँ भी
ढूँढने वाले तू सोच, तुझे क्या चाहिए मुझ में!!
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साथ भी उनके रहना मुश्किल !
हिज्र भी उनका सहना मुश्किल !!
सब कुछ उनसे ही कहना है !
जिनसे कुछ भी कहना मुश्किल !!
~ मंगल नसीम
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मंदिर"में दाना चुगकर चिड़ियां "मस्जिद" में पानी पीती हैं
मैंने सुना है "राधा" की चुनरी
कोई "सलमा"बेगम सीती हैं
एक "रफी" था महफिल महफिल "रघुपति राघव" गाता था
एक "प्रेमचंद" बच्चों को
"ईदगाह" सुनाता था
कभी "कन्हैया"की महिमा गाता
"रसखान" सुनाई देता है
औरों को दिखते होंगे "हिन्दू" और "मुसलमान"
मुझे तो हर शख्स के भीतर "इंसान"
दिखाई देता है...
क्योंकि...
ना हिंदू बुरा है ना मुसलमान बुरा है
जिसका किरदार बुरा है वो इन्सान बुरा है.-
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अजीब दर्द दिया है अजब ज़माना है |
कभी फ़साना ये अपना उन्हें सुनाना है ||
- प्रदीप श्रीवास्तव 'रौनक़ कानपुरी'
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मुझसे नहीं कटती अब ये उदास रातें !
बेखुदी मे कल सूरज से कहूँगा मुझे साथ लेकर डूबे !!
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आह़िस्ता-आह़िस्ता बढ़ रहीं चेहरे की लकीरें
शायद नादानी और तजुर्बे में बँटवारा हो रहा है
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गुजरते लम्हों में सदियां तलाश करता हूँ,
ये मेरी प्यास है नदियां तलाश करता हूँ
यहाँ तो लोग गिनाते हैं खूबियां अपनी,
मैं अपने में कमियां तलाश करता हूँ
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न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में,
वो एक लम्हा गुज़रते जिसे ज़माना लगे !
-सूफ़ी तबस्सुम
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महफिल वो नही जहां चेहरों की तादाद हो,
महफिल तो वो है जहाँ खयाल आबाद हो !
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पर्दो की क्या बिसात जो दीदार को रोक दे
नजर में धार हो तो क्या इस पार क्या उस पार
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दबी है आवाज़ दोनों के दरमियां तो क्या
बातें तो,ख़ामोश ख़्वाहिशें भी करती है
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आप क्यों दिल को बचाते हो यूँ टकराने से !
ये वो प्याला हैं जो छलक जाता हैं भर  जाने से !!
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