यह साल भी गुज़रा है तेरे प्यार की मानिन्द
आते हुए कुछ और था जाते हुए कुछ और
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गलती नीम या करैले की नहीं कि वे कड़वे हैं,
खुदगर्ज तो ज़ुबां है जिसे सिर्फ मीठा ही पसंद है।      
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ख्वाहिशों ने ही भटकाए हैं जिंदगी के रास्ते वरना
रूह तो उतरी थी जमीं पर मंजिल का पता लेकर।।
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मेरे ऐब तो  जमाने में उज़ागर है
फ़िक्र वो करें जिनके गुनाह परदे में है
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जो फ़ना हो जाऊँ तेरी चाहत में गुरूर मत करना
ये असर नही तेरे इश्क का मेरी दीवानगी का हुनर है
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ये जो रूके ठहरे से कदम हैं न..साहब
यही तेज़ रफ्तारी का सबब अता होंगे
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कहानी ख़त्म हुई और ऐसे ख़त्म हुई,
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए...
(रहमान फ़ारिस
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ताज्जुब न कीजियेगा गर कोई दुश्मन भी आपकी खैरियत पूछ जाए,
ये वो दौर है जहाँ हर मुलाकात में मकसद छुपे होते है !!
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चटखे हुए गिलास को ज़्यादा न दाबिए,
यूँ आदमी की प्यास को ज़्यादा न दाबिए !
ऐसा न हो कि खून ये दामन पे जा लगे,
ज़ख़्मों के आसपास को ज़्यादा न दाबिए..!🙏
(डॉ कुँवर बेचैन)
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