ROOH-E-SHAYARI
बहुत ज्यादा तरक्की मुझे अच्छी नहीं लगती,
बिना ओढ़नी कोई बेटी मुझे अच्छी नहीं लगती।
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ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
~बिस्मिल
अज़ीमाबादी
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किताबों सी शखासियत दे दे मेरे मालिक;
खामोश भी रहूॅ और सब कुछ बयां भी कर दूॅ।
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बैठे हैं महफिल में अब तक इसी आस में,
कि वो निगाहें उठाऐं तो हम सलाम करें।
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कुल्हड़ में चाय पीने का
एक नायाब फायदा ये भी है,
इसी बहाने चूम लेते हैं
देश की मिट्टी, जाने अनजाने.
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