GHAZAL-GOSHA GOSHA NOOR FISHAN HAI-ATEEQ FATEHPURI
ग़ज़ल
गोशा गोशा नूर फिशां है कौन मेरे घर आया है ।
देख के जिसका रूप सलोना चाँद बहुत शरमाया है ॥
किसको इतनी फ़िक़्र पड़ी है कौन चुरा ले जाएगा ।
आंसू आहें ज़ख्मे तमन्ना मेरा यही सरमाया है ॥
कुछ तो पास वफ़ादारी है खौफ़ है कुछ रुसवाई का ।
बात ये खुलकर कैसे कह दूँ किसने मुझे तड़पाया है ॥
इश्क़ की सैराबी को हमने पाँव के छाले फोड़ दिए ।
राहे वफ़ा आसान नहीं है अब ये समझे में
आया है ॥
लम्हा लम्हा ग़म का सूरज मुझसे कहता है ए अतीक़ ।
सहरा सहरा तेरी ख़ातिर धूप नहीं है साया है ॥
~ अतीक़ फतेहपुरी
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