GHAZAL- KAH DUN WAFA NAHI HAI ZAMANE ME DOSTON-IQBAL KHALISH
ग़ज़ल
कह दूं वफ़ा नहीं है ज़माने में दोस्तों ।
मैं खुद को रखूं कौन से ख़ाने में दोस्तो ॥
अब कोई शर्मशार नहीं होता झूट पर ।
इतना ही सच बचा है ज़माने में दोस्तो ॥
पत्थर का है मकान मेरा रेत का नहीं ।
कुछ देर तो लगेगी गिराने में दोस्तो ॥
क़िस्मत का रूठना है मोहब्बत का रूठना ।
उम्रें तमाम होंगी
मनाने में दोस्तो ॥
जलवे हैं बेशुमार तो आईने बेहिसाब ।
फिर भी कमी है आईना ख़ाने में दोस्तो ॥
~ इक़बाल ख़लिश
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