GHAZAL- MERI HAR BAAT ME SHAMIL RAHA - ALKA MISHRA


ग़ज़ल

मेरी हर बात में शामिल रहा है
मेरे ख़्वाबों की जो मंज़िल रहा है

तड़प तन्हाई और ये बेक़रारी
मुहब्बत का यही हासिल रहा है

अकेली मैं चली जिन रास्तों पर
तेरे बिन वो सफ़र मुश्किल रहा है

समझ लेता है जो हर बात दिल की
मेरी ख़्वाहिश में वो शामिल रहा है

जिन्होंने पर क़तर डाले हैं मेरे
उन्हीं हाथों में मुश्तकबिल रहा है


~ अलका मिश्रा

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