GEET-सूख गए हैं आँखों में आंसू आया कैसा दौर है-LOKESH SHUKLA

सूख गए हैं आँखों में आंसू आया कैसा दौर है
चलता फिरता पुतला लगता इन्सां अब कुछ और है

जब बसंत चेहरों पर खिलकर अपनी छाप छोड़ता था
जाने कैसा था वो फागुन टूटे हृदय जोड़ता था
अब वे भोर कहाँ हैं जिनमे महका करती थी साँसें
पावस भी तो नहीं जगाता उन सपनो की बौर है
चलता फिरता पुतला लगता इन्सां अब कुछ और है

कद बौने परछाईं लंबी ढले हौसले सूयर्मूखी
सुधियों के आँगन न उतरे हर क्षण जो थे चंद्र मुखी
टुकड़े टुकड़े बंटा आदमी पल पल मरता जीता है
भाग रहा मरुथल मरुथल मिले न कोई ठौर है
चलता फिरता पुतला लगता इन्सां अब कुछ और है

असली सूरत अनजानी है चेहरों पर हैं सौ चेहरे  
आडम्बर के शीशमहल में सच पर लगते हैं पहरे
हरे भरे भावों के बिरवे सूख गए दीखते दीखते
आम्र वनों में गीत मौन हैं छंदों की गति और है 
चलता फिरता पुतला लगता इन्सां अब कुछ और है


~ लोकेश शुक्ल

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