GHAZAL- LABON KO KALIYA-PRADEEP SRIVASTAVA "RAUNAQ"

लबों को कलियाँ नज़र को मस्ती,सनम का चेहरा गुलाब लिखना |
बदन तराशा हुआ है लिखना, सनम पे गर तुम क़िताब लिखना ||

हज़ारों ख़त मै तुम्हे लिखूंगा, लिखे हैं यूँ ख़त बहुत से तुमको |
मिले जो फुर्सत अभी नही तो, कभी तो ख़त का जवाब लिखना ||

वो ख़ुश रहे बस यही है मर्ज़ी, ओ लिखने वाले क़सम है तुमको |
सनम का किस्सा ग़ज़ब का लिखना, मेरी कहानी ख़राब लिखना |

जिसे भी चाहो दो मैकदा तुम, जिसे भी चाहो सुराही दे दो |
कभी वसीयत लिखो जो साक़ीतो नाम मेरे शराब लिखना ||

तुम्हारे ख़्वाबों को सच करूंगायकीं नही तो ये काम करना |
सवेरे उठना तो सबसे पहलेजो तुमने देखा वो ख़्वाब लिखना ||

जिधर भी देखो उधर है 'रौनक़' ये कौन आया बहार लेके |
हवा पे ख़ुशबू घटा पे सावनगुलों के रूख़ पर शबाब लिखना ||



प्रदीप श्रीवास्तव 'रौनक़

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