ROOH-E-SHAYRI

कुछ तो अजब है अपनी फ़ौज की गोलियों में !
चली सरहद के पार है,और ग़द्दार यहाँ कराह उठे !!
~ Unknown 

मुझे दोनो हाथो से लूटती है !
कितनी कातिल है तेरी अंगड़ाई !!
~ Unknown

हम भी फूलों कि तरह अपनी आदत से मजबूर है !
तोड़ने वाले को भी खूशबू की सजा देते है !!
~ Unknown 

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