ROOH-E-SHAYRI- NA NIKALNA THA NA MUSHKIL KA KOI HAL NIKLA

न निकलना था न मुश्किल का कोई हल निकला !
जो समंदर में था बादल से वही जल निकला !!
ज़िन्दगी भर के दुखों का सिला जन्नत में मिला !
बीज बोया था कहां और कहाँ फल मिला !!
~ बुद्ध सेन शर्मा

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