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Showing posts from June, 2020

ROOH-E-SHAYARI ( Aaj Ki Shayari )

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DEDICATED TO MY FATHER 1 मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहा । मैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में । 2 बड़ी तन्हा सी बेपरवाह गुजर रही थी जिंदगी गालिब   अब यह आलम है एक छींक भी आ जाए तो दुनिया गौर से देखती है 3 इसे नसीहत कहूँ या एक ज़ुबानी तीर साहिब ! एक शख्स कह गया , कि गरीब मोहब्बत नहीं करते !! 4 ना कर इतना गरूरअपने नशे पे ऐ शराब तुझ से ज़्यादा नशा रखती हैंआँखे किसी की 5 किसी ने मुझसे पूछा ,“ कैसी है अब जिंदगी ” मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया “ वो खुश है 6 कसा हुआ तीर हुस्न का , ज़रा संभल के रहियेगा , नजर नजर को मारेगी , तो क़ातिल हमें ना कहियेगा 7 तू तो नफरत भी ना कर पायेगा उस शिद्दत के साथ , जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर हमनें किया। वसीम बरेलवी।। 8 जाने वो कैसे..मुकद्दर की किताब लिख देता है साँसे गिनती की और ख्वाइशें बेहिसाब लिख देता है   9 मै तो फना हो गया उसकी , एक झलक देखकर , ना जाने हर रोज़ आईने पर , क्या गुजरती होगी। 10 साफ दामन का दौरा खत्म हुआ लोग अपने धब्बों पर भी गुरुर करने लगे हैं" 11 उम्र भ

SUFI - ANKHE KHOLE JALWA DEKHO - ऑंखें खोलो जलवा देखो, देखो कैसा परदा है - हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'

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 ANKHE KHOLE JALWA DEKHO ऑंखें खोलो जलवा देखो , देखो कैसा परदा है । याद में उसकी डूब सको तो , परदे में ही जलवा है ।। याद करो उस रोज़े अज़ल को , जब तुमने दी पीने को । उस दिन से ये हाल वही है , जैसा भी है अच्छा है ।। शाम सलोनी हवा मो-अत्तर ,  रात ने गेसू खोल दिए । आज वो क़त्ले आम करेंगे , घर घर इसका चरचा   है ।। सर पर हो वालियों का साया ,  रदद   बलैयां दुश्मन दूर । आज बटेगा नूर   का सदक़ा , साजन के घर जलसा है ।। हमने आँखें मूँद ली अपनी , याद में जिसके खोये हैं । सजदा गाहे नूरे अज़ल है , इस दुनिया   का दूल्हा है ।। - हज़रत  मंज़ूर आलम शाह ' कलंदर मौजशाही ' ( गूलर के फूल , भाग 5 )

ROOH-E-SHAYARI ( आज की शायरी )

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1 कड़ी से कड़ी जोड़ते जाओ तो जंजीर बन जाती है   मेहनत पे मेहनत करो तो तकदीर बन जाती है 2 पानी में अक्स देखते हैं , लहरों को ख़ता देते हैं , ग़ैरों की ग़ल्तियों की अपनों को सज़ा देते हैं ! इंसान को इंसान तो   समझते नहीं लेकिन , पत्थर को भी ख़ुदा तो यही लोग बना देते हैं ! - ALFAZ 3 उन्हें यह फिक्र है हरदम , नई तर्ज- ए- जफ़ा क्या है ? हमें भी शौक है   देखें , सितम की इंतिहा क्या है ? 4 कमजोर पड़ गया है मुझसे तुम्हारा ताल्लुक   या कहीं और सिलसिला मजबूत हो गया 5 तमाम   उम्र   कहाँ   कोई   साथ   देता   है मैं जानता हूँ , मगर थोड़ी दूर साथ चलो अभी   तो   जाग   रहे   हैं चराग़ राहों के अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो 6 लफ्ज़ों के दाँत नहीं होते पर ये काट लेते हैं , दीवारें खड़ी किये बगैर हमको बाँट देते हैं 7 जाने कौन रह गया भीगने से शहर में , जिसके लिए लौटती है रह-रह के बारिश फिर से. 8 इत्र की महक दामन में हो या ना हो , जज़्बात और अल्फ़ाज़ हमेशा महकदार होने चाहिए. 9 हाथ होता तो कब का छुड़ा लेते , पकड़े बैठे हैं वो , निगाहों से ह

SUFI -ANDAZ MERE SANAM KA NIRALA अंदाज़ मेरे सनम का निराला ~ शाह मंज़ूर आलम "कलंदर मौज शाही"

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ANDAZ MERE SANAM KA NIRALA   अंदाज़ मेरे सनम का निराला, रातों की ठंडक दिन का उजाला !  पूजा हमारी उसके लिए सब, क़दमों में उसके हमारा शिवाला !!  देखो तो सूरज रौशन हो जैसे, इक देवता का दरशन हो जैसे !  दरशन हो जिसको तक़दीर उसकी, महकी हो जैसे फूलों की माला !!  मैं क्या बताऊँ कैसे दिखाऊं, उसकी इनायत कैसे गिनाऊं !  कैसे ये होगा उसको भुलाऊँ, कि डूबी हुई नाव जिसने निकाला !!   जाए कहीं क्यों दर दर वो भटके, काहे कहीं और सर जाके पटके !  साक़ी तुम्हारी निगाहों के सदक़े, वो भटकेगा कैसे जो पी ले पियाला !!  सरकार मेरे दिलदार मेरे, रहमत के जैसे बादल घनेरे !  ज़ुल्फ़ें मो अम्बर ख़ुश्बू बिखेरे, रहिये सम्हाले जैसे सम्हाला !!   ~ शाह मंज़ूर आलम "कलंदर मौज शाही"

Tension over India-China border | India Border Dispute | Laddakh Dispute...

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ROOH-E-SHAYARI ( आज की शायरी )

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1 जनाजा रोक कर वह इस अंदाज में बोले गली छोड़ने को कहा था , तुम तो दुनिया छोड़ चले 2 जुल्फ खुली रखती हैं वह महबूब का दिल बांधने के लिए 3 कोई तस्वीर लगी होगी यहां दिल में इक कील गड़ी है अबतक 4 हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री बस यही ग़नीमत है तेरे बाद शब गुज़री ~ ज़ुहूर नज़र 5 कैसे कह दूँ कि थक गया हूँ मैं , न जाने किस किस का हौसला हूँ मैं। 6 कितनी पलकों की नमी मांग के लाई होगी , प्यास तब फूल की शबनम ने बुझाई होगी।। 🙏 7 एक ठोकर खाकर भी जो सँभला नहीं , दर ब दर की ठोकर खाने लगा। वसीम बरेलवी।। 8 तरस आता है मुझे अपनी मासूम सी पलकों पर जब भीग कर कहती हैं कि अब रोया नहीं जाता 9 मर जाऊँ ऐसी मासूमियत पर । गुनाह भी करते हैं , और पर्दा भी हटा देते हैं ॥ 10 जैसा भी हूं अच्छा या बुरा अपने लिए हूं मैं खुद को नहीं देखता औरों की नजर से 11 डर ये है कि , बिछड़ ना जाये , वो शख्श मुझ से ज़माना मुझे तन्हा देखने का , तलबग़ार बहुत है 12 गुनेहगार को गले लगाकर इस कदर माफ किया बेगुनाह भी चिल्ला उठे , हम भी गुनेहगार है 13 आं

Sufi - AISI SHAMA KAHAN HAI RAUSHAN-ऐसी शमा कहाँ है रौशन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं-~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'

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AISI SHAMA KAHAN HAI RAUSHAN ऐसी शमा कहाँ है रौशन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं ! चन्दन बदना नैना लोचन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !! मौजे सबा में ख़ुश्बू उसकी जाने चमन है मेरा मितवा ! मेरे जैसा कोई साजन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !! एक यही चौखट के जिस पे दीवानों का सर झुक जाए ! भरी हो ख़ुश्बू ऐसा आँगन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !! श्याम सलोना मेरा साजन चंदा जैसा दिल का दरपन ! उसके जैसा उजला तन मन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !! टूटे दिल की आस बंधाये जो उसको पा ले जी जाए ! देख ए दुनिया ऐसा रतन धन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !! ~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह ' कलंदर मौजशाही '