ROOH-E-SHAYARI ( आज के शेर )
ज़मीं पर रह कर आसमां,
को छूने की फितरत है मेरी,
पर गिरा कर किसी को,
ऊपर उठने का शौक़ नहीं मुझे
2
दो दिनके लिए जो हाथमेरे लगजाएं ज़मानेकी खुशियाँ
दुख दर्द के मारे लोगों में मैं बाँट के सबको ख़ुश कर दूं
- असद अजमेरी
3
निशानी अपने घर की क्या बताए तुम्हें
जहाँ दीवारें उदास देखो , चले आना..
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तनहा कहीं मिलो तो बयां आरज़ू करें ,
अब लाकडाउन में और
क्या गुफ्तगू करें ।।
4
मेरी आँखों में जो ये नमकीन पानी है !
ये तेरे इश्क़ की आख़िरी निशानी है !!
5
हसीनो के सितम को मेहरबानी कौन कहता है !
अदावत को मोहब्बत की निशानी कौन कहता है !!
बला है कहर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत का !
हसीनो की जवानी को जवानी कौन कहता है !!
6
अपनी नादानी पे वो पछता रहा है रात दिन।
आशियाँ जिसने जलाया था उजाले के लिए।।
- अरुण सरकारी
7
पहुँचा ही वक़्त ने दिया मंज़िल पे उनको भी।
दरिया सिमट के आज समंदर में आ गए।।
- अरुण सरकारी
8
न थी कोई ख्वाहिश, न ही थी कोई फरमाइश
की थी तो सिर्फ उस झूठे प्यार की नुमाइश
9
अपनी तकदीर की आजमाइश ना कर
अपने गमों की नुमाइश ना कर
जो तेरा है वो तेरे पास जरूर आएगा
उसे पाने की रोज ख्वाहिश न कर
10
जिसकी मस्ती जिन्दा है, उसकी हस्ती भी जिन्दा है।
बाकी सब तो जबरदस्ती जिन्दा है।
11
ज़मीन पर कारवां गुज़र गया
आसमान पर जहाज़ देखते रहे।
12
ज़मीन पर कारवां गुज़र गया
आसमान पर जहाज़ देखते रहे।
13
हमने पलकों के किनारे कभी भिगोये नहीं
वो समझते रहे कि हम कभी रोये ही नहीं
वो पूछते रहे ख़्वाबों में किसे देखते हो
और हम हैं कि बरसों से सोये ही नहीं
14
जाने ये कौन चितेरा है,जो सजा लाया नया सवेरा है ,
नभ की कोरी चादर पर जिसने, हर रंग भरपूर बिखेरा है ?
15
अगर पलक पर है मोती तो यह नहीं काफी
हुनर भी चाहिए अल्फाज में
पिरोने का
16
लौट आयेगी खुशियां,
अभी
मुश्किलों का शोर है
जरा सम्हालकर रहो दोस्तों
ये
इम्तिहानों का दौर है।
17
"दिल" पर भी सेनेटाइजर छिड़कते रहिये,
यह "इश्क़"
बड़ी संक्रामक बीमारी है..!!
18
वो पलक झुका कर सलाम करते हैं
दिल से दुआ आपके नाम करते हैं
19
बाल भी खुले थे, काजल भी लगा रखा था
और झुमके ने तो उधम मचा रखा था
20
जब जाना, तो है यह जाना,
कितना कम था मैंने जाना ।।
इस दुनिया की रीत यही है,
रहा हमेशा जाना-आना ।।
जो कुछ बीता कल के दिन में,
आज सुबह ही हुआ पुराना ।।
दिल से दिल का रिश्ता था तब,
ऐसा भी एक रहा ज़माना ।।
जीवन की चादर में बुनना
है, सुख-दुख का ताना-बाना ।।
क्या मैंने तुममें पाया, यह
कितना मुश्किल है समझाना !!
तल्ख़ हक़ीक़त में जीने दो,
एक सपना है, तुमको पाना ।।
दुनिया इसे ग़ज़ल समझेगी,
पर है यह मेरा अफ़साना ।।
डा. शिवानी मातनहेलिया
21
जिंदा रहे तो फिर से आयेंगे
तुम्हारे शहरों को आबाद करने
वहीं मिलेंगे गगन चुंबी इमारतों के नीचे
प्लास्टिक की तिरपाल से ढकी अपनी झुग्गियों में
चौराहों पर अपने औजारों के साथ
फैक्ट्रियों से निकलते काले धुंए जैसे
होटलों और ढाबों पर खाना बनाते, बर्तनो को धोते
हर गली हर नुक्कड़ पर फेरियों मे
रिक्शा खींचते आटो चलाते…
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