ROOH-E-SHAYARI - आज के 21 शेर
1
मंज़िलों पे जिन्हे जाना है, तूफ़ानो से डरा नहीं करते ।
तूफ़ानो से जो डरे मंज़िल कभी पाया नहीं करते ॥
2
अब तो इन आंखों से भी जलन होती है मुझे
खुली हो तो तलाश तेरी, बंद हो तो ख्वाब तेरे
3
दिल तो पहले ही जुदा थे यहाँ बस्ती वालो
क्या क़यामत है कि अब हाथ मिलाने से गए
~ अज्ञात
4
वजह पूछने का वक़्त ही नहीं मिला
वो लहज़ा बदलते गए और हम अजनबी होते गए ।
5
अच्छा लगता है तुम्हे पढना
लिखावट से भी तुम्हारी आवाज आती है
6
एक से मिल के सब से मिल लीजे
आज हर शख़्स है नक़ाबों में
~ निदा फ़ाज़ली
7
सियासत को लहू पीने की आदत है !
वरना मुल्क में सब ख़ैरियत
है !!
8
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
~ अमीर मीनाई
9
गुजरे इश्क की गलियों से और समझदार हो गए
कुछ 'ग़ालिब' बने यहां कुछ 'गुलजार' हो गए
10
जो कभी न भर पाए ऐसा भी एक घाव है
जी हां, उसी का नाम 'लगाव' है
11
जब भी तुम्हारा हौसला आसमान तक जाएगा
याद रखना कोई न कोई पंख काटने जरूर आएगा
12
नज़रे-करम मुझ पर इतना न कर
कि तेरी मोहब्बत में दीवाना हो जाऊं,
मुझे इतना न पिला इश्क-ए- ज़ाम
मैं इश्क के ज़हर का आदि
हो जाऊं ।
13
बड़ी बे अदब हैं ज़ुल्फ़ें आपकी,
हर वो हिस्सा चूमती हैं जो ख़्वाहिश है मेरी
14
जब कभी फुर्सत मिले तो, मेरे दिल का बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ, मुझे कोई शाम उधार दो
15
रुतबा कम है, मगर लाजवाब है मेरा
जो हर किसी के दर पर दस्तक दे वह किरदार नहीं मेरा
16
कामयाब होने के लिए अकेला ही आगे बढ़ना पड़ता है
लोग तो पीछे तब आते हैं जब हम कामयाब होने लगते हैं
17
था तो कुछ जरूर हमारे दरम्यां लेकिन,
फ़साने को हकीक़त तक ला न सके।
उन्हें ये मलाल कि हमने पहल न की,
हमें ये दुःख कि इशारा समझ न सके।"
18
इश्क की उम्र ठीक नहीं जवानी तक
साथ सफर झुर्रियों तक होना चाहिए
19
हम गुलामो को काफ़ी हैं उनके क़दम,
उनकी मर्ज़ी पे है बख़्श दे जो करम,
शर्त ये हैं गुलामी में इतनी मगर,
रख के सर फिर उठाना नहीं चाहिए !
- हज़रत मंज़ूर आलम शाह "कलंदर
मौजशाही"
20
ख़ुद्दार मेरे शहर मे फाक़े से मर गया,
राशन तो मिल रहा था पर वो फोटो से डर गया।।
खाना थमा रहे थे लोग सेल्फी के साथ साथ,
मरना था जिसको भूख से वो गैरत से मर गया।।
21
घर बैठकर जान बचा रहा हूँ अपनी
ताकि उम्र भर तुम पर जान दे सकूँ
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