ROOH-E-SHAYARI - AAJ KE 21 SHER
1
एक रूह है जिसे पनाह चाहिए ।
एक
मिज़ाज है जिसे आवारगी की तलब
2
हो गई गुम कहाँ सहर अपनी
रात जा कर भी रात आई है
3
कमाल का ताना दिया है आज जिंदगी ने
अगर कोई तुम्हारा है तो तुम्हारे पास क्यों नहीं है
4
रिश्ता उन से इस कदर मेरा बढ़ने लगा,
वो मुझे पढ़ने लगे, हम उन्हें लिखने लगे।
5
मै आईना हूँ, तेरे चेहरे का सच तुझे दिखाऊंगा बेझिझक।
न देखना हो तो मेरे सामने न आना बिना मेकअप।।
6
सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है !
उधर ही ले चलो कश्ती जिधर तूफान आया ह!!
7
दोस्तों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
लगता है जैसे खुल के जिए एक ज़माना हो गया।
काश कहीं मिल जाए वो काफिला दोस्तों का,
ज़िंदगी जिये एक ज़माना हो गया।
8
मिल जाये अगर सुक़ून
उन्हें मेरे तड़पने से !
तो हर सांस मेरी उनपे क़ुर्बान है !!
9
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
- बहादुर शाह ज़फ़र
10
छीनकर हाथों से जाम वो इस अंदाज से बोली
कमी क्या है इन होठों में जो तुम शराब पीते हो
11
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
- Kumar Vishwas.
12
मुझे बहुत प्यारी है तुम्हारी दी हुई हर निशानी !
चाहे वो दिल का दर्द हो या आँखों का पानी !!
13
जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ !
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते !!
14
क़तरा समझने की तुम
हमको न भूल करना
हम वो हैं जो समुन्दर काँसे
में ले के आए !
15
अदब से झुकना मेरी फितरत में शामिल था
मगर हम क्या झुके लोग तो खुद को खुदा समझ बैठे
16
ना जाने वक्त खफा है या ख़ुदा नाराज है हमसे
दम तोड़ देती है हर खुशी मेरे घर आते आते
17
महफूज सारे बादशाह, वजीर और शहजादे हैं
जो बेघर हैं, इस तूफान में, वो महज़ प्यादे हैं
18
फ़ैसला सोच समझकर ही सुनाना मुंसिफ
इक अदालत ओर है तेरी अदालत के सिवा
19
कहाँ चलता है आज कल का प्यार वर्षों तक !
एक महीने में मिटा के जिस्म की प्यास मुझ फेर लेते हैं !!
20
जब जिस्म से रूह निकल सकती है !
तो दिल से लोग क्यों नहीं निकल सकते !!
21
रात सारी तड़पते रहेंगे हम अब !
आज फिर ख़त तेरे पढ़ लिए शाम को !!
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