SUFI - ANKHE KHOLE JALWA DEKHO - ऑंखें खोलो जलवा देखो, देखो कैसा परदा है - हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'
ऑंखें खोलो जलवा देखो, देखो कैसा परदा है ।
याद
में उसकी डूब सको तो, परदे में ही जलवा है ।।
याद
करो उस रोज़े अज़ल को, जब तुमने दी पीने को ।
उस
दिन से ये हाल वही है, जैसा भी है अच्छा है ।।
शाम सलोनी हवा मो-अत्तर, रात ने गेसू खोल दिए ।
आज
वो क़त्ले आम करेंगे, घर घर इसका चरचा है ।।
सर
पर हो वालियों का साया, रदद बलैयां
दुश्मन दूर ।
आज
बटेगा नूर का सदक़ा,साजन के घर जलसा है ।।
हमने
आँखें मूँद ली अपनी, याद में जिसके खोये हैं ।
सजदा
गाहे नूरे अज़ल है, इस दुनिया का दूल्हा है ।।
- हज़रत मंज़ूर
आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'
(
गूलर के फूल, भाग 5 )
Jai ho
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