SUFI KALAM - AFSAANA-ULFAT ME SAU RANG BHARA JAAYE- HAZRAT MANZOOR AALAM 'KALANDAR MAUJSHAAHI

AFSAANA-ULFAT ME SAU RANG BHARA JAAYE

अफ़सानाये उल्फ़त में सौ रंग भरा जाये !
उनकी ही मोहब्बत में दम तोड़ दिया जाए !!

वो चाहें तो ये दर क्या ये सर भी दिया जाए !
करनी हो मोहब्बत तो कैसे किया जाए !!

हर सिम्त गिरी बिजली हर सिम्त अलम टूटे !
मैख़ाने के बाहर तो हमसे जिया जाए !!

तुम अपनी बलन्दी से पस्ती पे ना जाना !
दुनिया के लिए कोई मातम किया जाए !!

हम अपनी ग़रीबी का इज़हार नहीं करते !
ज़िन्दा कोई रखता है क्या नाम लिया जाए  !!

~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'

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