ROOH-E-SHAYARI ( Aaj Ki Shayari )
DEDICATED TO MY FATHER
1
मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहा ।
मैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में ।
2
बड़ी तन्हा सी बेपरवाह गुजर रही थी जिंदगी गालिब
अब यह आलम है एक
छींक भी आ जाए तो दुनिया गौर से देखती है
3
इसे नसीहत कहूँ या एक ज़ुबानी तीर साहिब !
एक शख्स कह गया, कि गरीब मोहब्बत नहीं करते !!
4
ना कर इतना गरूरअपने नशे पे ऐ शराब
तुझ से ज़्यादा नशा रखती हैंआँखे किसी की
5
किसी ने मुझसे पूछा,“कैसी है अब जिंदगी”
मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया“वो खुश है
6
कसा हुआ तीर हुस्न का, ज़रा संभल के रहियेगा,
नजर नजर को मारेगी, तो क़ातिल हमें ना कहियेगा
7
तू तो नफरत भी ना कर पायेगा उस शिद्दत के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर हमनें किया।
वसीम बरेलवी।।
8
जाने वो कैसे..मुकद्दर की किताब लिख देता है
साँसे गिनती की और ख्वाइशें बेहिसाब लिख देता है
9
मै तो फना हो गया उसकी, एक झलक देखकर,
ना जाने हर रोज़ आईने पर, क्या गुजरती होगी।
10
साफ दामन का दौरा खत्म हुआ
लोग अपने धब्बों पर भी गुरुर करने लगे हैं"
11
उम्र भर की इज्जत आशिकी में नीलाम हुई
मोहब्बत के नाम पर
हादसों से मुलाकात हुई
12
मोहब्बत कोई हमसे सीखे
जिससे इश्क है उसे पता नहीं
13
पलको के चिलमन में, आज भी एक खामोशी सी है
ना जाने वक़्त का सितम, कैसे हमने अकेले काटे हैं
14
तुम्हें सलीक़ा सिखा देंगे शेर कहने का
हमारे साथ कोई रात जाग कर देखो।।
15
उड़ा देती है नींद कुछ जिम्मेदारियां घर की
रात में जागने वाला
हर शख्स शायर नहीं होता
16
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
अकबर इलाहाबादी
17
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है
जौन एलिया
18
अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए
फिर से मिरे चेहरे पे ये दाने निकल आए
एक ख़ौफ़ सा रहता है मिरे दिल में हमेशा
किस घर से तिरी याद न जाने निकल आए
मुनव्वर राना
19
कोई बचने का नहीं, सब का पता जानती है
किस तरफ आग लगना है, हवा
जानती है
20
जुबां तो खोल, नज़र तो मिला, जवाब तो दे..
मै तुझपे कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे…
21
एक मैं हूँ, किया ना कभी सवाल कोई
एक तुम हो, जिसका कोई जवाब नहीं.
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