SUFI - HAIN RANG-O-NOOR KE DHAARE हैं रंग ओ नूर के धारा मेरे ग़रीब नवाज़ !


हैं रंग ओ नूर के धारा मेरे ग़रीब नवाज़ !
ग़रीब दिल के सहारा मेरे ग़रीब नवाज़ !!

बलाएँ आईं तो लेकिन निगाह फ़रमाया !
ग़ुलाम जब भी पुकारा मेरे ग़रीब नवाज़ !!

सहारा पाने यहीं आए कुल जहां वाले !
कि आप सबके सहारा मेरे ग़रीब नवाज़ !!

कभी ये आपने पूछा नहीं कि क्या हो तुम !
हो चाहे जैसा बिचारा मेरे ग़रीब नवाज़ !!

क़दम पे आपके जो सर झुकाने दिल से गया !
तो चमका उसका सितारा मेरे ग़रीब नवाज़ !!
हज़रत मंजूर आलम शाह
'कलंदर मौजशाही'


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