SUFI KALAM - आरज़ू है यही मेरे दिल की, इस तरह उनको दिल में बसाये !

आरज़ू है यही मेरे दिल की,
इस तरह उनको दिल में बसाये !
कि चमन ज़िंदगी का हरा हो,
फूल बनकर कली मुस्कराये !!

ऎसी नज़रें करम है कि बंदा,
माजराए करम क्या सुनाये !
यानी मेरा ख़ुदा वो ख़ुदा है,
जान जिसपर निछावर हो जाये !!

हुस्न ख़ुद अपनी सूरत में आकर
चार जानिब तजल्ली दिखाये !
देख ले जो नज़र भर के उसको
याद जो कुछ हो सब भूल जाये

कि यही जब भी कुछ इल्तिजा की
साक़ी से बस यही हमने माँगा !
ज़िंदगी मैकदे ही में गुज़रे
उम्र सारी  यहीं बीत जाये !!

काफ़िला दिल का था जिसके आगे
जाल दुनिया ने कितने बिछाये !
हम मगर धुन में अपनी जो निकले
तो क़दम फिर कहीं रुक न पाये !!
- हज़रत मंज़ूर आलम शाह
'कलंदर मौजशाही'

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