ROOH-E-SHAYARI -आज के २१ शेर
1
जिस
दिन सादगी श्रृंगार हो जाएगी !
उस
दिन आइने की हार हो जाएगी !!
2
ख़ुदा
करे कि वो मेरा नसीब हो जाये,
वो
जितना दूर है उतना क़रीब हो जाये॰
तू
चूमती है ए बादे सबा बदन उसका,
तेरी
तरह से ही मेरा नसीब हो जाये
3
ये हसीन जवां नज़ारे ये बहार याद
रखना,
ओ
दूर जाने वाले मेरा प्यार याद रखना
4
ज़ूल्फ
बिखरा के निकले वो घर से,
देखो
बादल कहाँ आज बरसे॰
मैं
हर एक हाल मे आपका हूँ,
आप
देखें मुझे इस नज़र से॰
5
मैंने दिल से कहा उसे
थोड़ा
कम याद किया कर,
दिल
ने कहा वो साँस है तेरी
तू
साँस ही मत लिया कर.
6
बे
वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है
मौत
से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है
सब
को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल
यूँही
क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है
ज़िन्दगी
एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो
"क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है"
दिल
बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी
यूँही
गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है
-
Gulzar
7
7 आइना बडा उदास है आजकल ।
घंटो
निहारते थे वो, अब दो पल भी नहीं ।
8
सारे
मुऌको को नाज़ था अपने अपने परमाणु पर
कायनात
बेबस हो गई एक छोटे से कीटाणु पर
9
वो
ना ही मिलता तो अच्छा था,
बेकार
में मोहब्बत से नफ़रत हो गई
10
ये
कैसा समय आया कि !
दूरियाँ
ही दवा बन गईं !!
11
देख
दुनिया की बेरूखी, न पूछ ये कि कैसे हैं,
हम
बारूद पे बैठें हैं, और हर शख्स माचिस जैसा है
12
कयामत
है तेरा यूं बन सवर के आना
हमारी
छोड़ो आईने पर क्या गुजरती होगी
13
मोहब्बत
थी तब, हक से रूठ जाते थे
अब
नफरत में बेवजह मुस्कुराना होता है
14
रूठने
का हक तो अपने ही देते हैं
चाहत
इतनी ही हो कि संभल जाए
15
इस
कदर भी ना हो कि दम ही निकल जाए
परायों
के सामने तो मुस्कुराना ही पड़ता है
16
घर
रहिए कि बाहर है इक रक़्स बलाओं का
इस
मौसम-ए-वहशत में नादान निकलते हैं
~ फ़रासत रिज़वी
17
वो
चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार
ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
~ इक़बाल साजिद
18
बेकार
ज़ाया किया वक्त किताबों में,
सारे
सबक तो कमबख्त ठोकरों से मिले हैं ।
19
रिश्तों
के, यही उसूल हैं;
बातें
भूलिए जो फिजूल हैं..
20
रात
तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना
ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
21
ना
जाने कब तक चलेगा ये उदासियों का दौर,
ऐ
वक़्त फुर्सत से बता मेरी खताए क्या थी
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