Sufi - AISI SHAMA KAHAN HAI RAUSHAN-ऐसी शमा कहाँ है रौशन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं-~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'
AISI
SHAMA KAHAN HAI RAUSHAN
ऐसी शमा कहाँ है रौशन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !
चन्दन बदना नैना लोचन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !!
मौजे सबा में ख़ुश्बू उसकी जाने चमन है मेरा मितवा !
मेरे जैसा कोई साजन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !!
एक यही चौखट के जिस पे दीवानों का सर झुक जाए !
भरी हो ख़ुश्बू ऐसा आँगन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !!
श्याम सलोना मेरा साजन चंदा जैसा दिल का दरपन !
उसके जैसा उजला तन मन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !!
टूटे दिल की आस बंधाये जो उसको पा ले जी जाए !
देख ए दुनिया ऐसा रतन धन कहीं नहीं कहीं नहीं कहीं नहीं !!
~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'
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