SUFI - AAPKI BAARGAH ME JISKO PANAH MIL GAI आपकी बारगाह में जिसको पनाह मिल गई-~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह , 'कलंदर मौजशाही'
AAPKI BAARGAH ME JISKO
PANAH MIL GAI
आपकी बारगाह में जिसको
पनाह मिल गई |
उसकी तमाम ज़िन्दगी खुशबुओं
में ढल गई ||
ऐसे क़दम की बरकतें जिसको
नसीब से मिली |
उसको खिज़ां न छू सकी दूर
से निकल गयी ||
उसकी गली में जो गया सर बा सजूद ही रहा |
किस्साये हयात की शक्ल ही बदल गयी ||
कैसे बताएं ज़िन्दगी ज़िन्दगी
न थी मगर |
उनके दस्ते नाज़ ने छू लिया सम्हल गयी ||
मैकशी इबादत है आज दस्ते
साकी से |
जाम जब अता हुआ ज़िन्दगी
बहल गयी |
~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह , 'कलंदर
मौजशाही'
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