ROOH-E-SHAYARI आज के 21 शेर
जाने किस पल क़ुबूलियत हो जाए,
लबों पे मुसलसल फ़रियाद रखिये !
- फिरोज़ खान
अल्फ़ाज़
21
एक-एक क़दम गर दोनों बढ़ें,
दो क़दम पे हो जाएगी सुल्ह !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
20
कोई तो जुर्म था जिसमे सभी शामिल
थे,
तभी तो हर शख़्स मुंह छिपाए फिर
रहा हैं ।
19
मुझको यकीं है किसी फिक्र में ना
डालेगा
खुदा खुदा है कोई रास्ता निकलेगा ।
18
मग़रूर की निगाह जब उनकी तरफ उठी,
अश्कों के साथ बह गया जितना गुरूर
था।
17
यूँ देखिये तो आंधी में बस इक शजर
गया,
लेकिन न जाने कितने परिन्दों का
घर गया
16
पसीने की स्याही से लिखे पन्ने,कभी कोरे नहीं
होते।
जो करते है मेहनत दर मेहनत, उनके सपने कभी
अधूरे नहीं होते।।
15
न संघर्ष न तकलीफें, फिर क्या मजा है
जीने में,
तूफान भी रूक जाएगा, जब लक्ष्य रहेगा
सीने में ।
14
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त
लेकिन,
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब'
ये
ख़याल अच्छा है
13
अभी मीआद बाक़ी है सितम की
मोहब्बत की सज़ा है और मैं हूँ
~हफ़ीज़ जालंधरी
12
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल
पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल
पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा
आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता
है
11
पहुंच गई है गिनती हजारों में,इसे लाख मत होने दो।
रुक जाओ अपने घरों में,वतन को राख मत होने दो
10
मेरे हाथों से तराशे हुए पत्थर के
सनम !
मेरे ही सामने भगवान् बने बैठे
हैं !!
साफ दिखते भी नही ,साफ मिलते भी नही,
न जाने हुजूर किस चिलमन में छिपे बैठे
है
9
यकिनन मोहब्बत की शुरूआत नजरोंसे
होती है,
हो अगर लफ्जोंमें नजाकत तो नजरें भी घायल होती है ।
8
दुनिया को नफरत का यकीन नहीं
दिलाना पड़ता
मगर लोग मोहब्बत का सबूत जरूर मांगते
हैं
7
किताब के मुड़े पन्ने कहते हैं
दास्तां
बहुत कुछ रह गया है, तुमसे कहे बगैर
6
दोस्ती किस से न थी,
किस
से मुझे प्यार ना था
जब बुरे वक्त पर देखा, तो कोई यार ना था
5
कोशिश सिर्फ इतनी है, तु नाराज ना हो
हमसे,
बाकी नजरअंदाज करने वालों से तो नजर
हम भी नहीं मिलाते..
4
मोहब्बत एक खेल था ताश का, वह बाजी मार गए
हम बादशाह होते हुए भी, बेगम से हार गए
3
ख़ुदा करे कि वो मेरा नसीब हो जाये
!
वो जितना दूर है उतना क़रीब हो
जाये !!
तू चूमती है ए बादे सबा बदन उसका !
तेरी तरह से ही मेरा नसीब हो जाये
!!
2
इश्क़ में जिसने भी दिल पे चोट
खाई है,
वह समझ सकता है,
शायरी
एक दवाई है
1
और तो मुझ
को मिला क्या मेरी मेहनत का सिला
चंद सिक्के
हैं मेरे हाथ में छालों की तरह
~ जाँ निसार अख़्तर
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