SUFI -ANDAZ MERE SANAM KA NIRALA अंदाज़ मेरे सनम का निराला ~ शाह मंज़ूर आलम "कलंदर मौज शाही"



ANDAZ MERE SANAM KA NIRALA 
 अंदाज़ मेरे सनम का निराला, रातों की ठंडक दिन का उजाला ! 
पूजा हमारी उसके लिए सब, क़दमों में उसके हमारा शिवाला !!

 देखो तो सूरज रौशन हो जैसे, इक देवता का दरशन हो जैसे !
 दरशन हो जिसको तक़दीर उसकी, महकी हो जैसे फूलों की माला !!

 मैं क्या बताऊँ कैसे दिखाऊं, उसकी इनायत कैसे गिनाऊं ! 
कैसे ये होगा उसको भुलाऊँ, कि डूबी हुई नाव जिसने निकाला !! 

 जाए कहीं क्यों दर दर वो भटके, काहे कहीं और सर जाके पटके ! 
साक़ी तुम्हारी निगाहों के सदक़े, वो भटकेगा कैसे जो पी ले पियाला !!

 सरकार मेरे दिलदार मेरे, रहमत के जैसे बादल घनेरे ! 
ज़ुल्फ़ें मो अम्बर ख़ुश्बू बिखेरे, रहिये सम्हाले जैसे सम्हाला !! 

 ~ शाह मंज़ूर आलम "कलंदर मौज शाही"

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