ROOH-E-SHAYARI ( आज की शायरी )


1
जनाजा रोक कर वह इस अंदाज में बोले
गली छोड़ने को कहा था, तुम तो दुनिया छोड़ चले
2
जुल्फ खुली रखती हैं वह
महबूब का दिल बांधने के लिए
3
कोई तस्वीर लगी होगी यहां
दिल में इक कील गड़ी है अबतक
4
हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री
बस यही ग़नीमत है तेरे बाद शब गुज़री
~ ज़ुहूर नज़र
5
कैसे कह दूँ कि थक गया हूँ मैं,
न जाने किस किस का हौसला हूँ मैं।
6
कितनी पलकों की नमी मांग के लाई होगी,
प्यास तब फूल की शबनम ने बुझाई होगी।।🙏
7
एक ठोकर खाकर भी जो सँभला नहीं,
दर ब दर की ठोकर खाने लगा।
वसीम बरेलवी।।
8
तरस आता है मुझे अपनी मासूम सी पलकों पर
जब भीग कर कहती हैं कि अब रोया नहीं जाता
9
मर जाऊँ ऐसी मासूमियत पर ।
गुनाह भी करते हैं, और पर्दा भी हटा देते हैं ॥
10
जैसा भी हूं अच्छा या बुरा अपने लिए हूं
मैं खुद को नहीं देखता औरों की नजर से
11
डर ये है कि, बिछड़ ना जाये, वो शख्श मुझ से
ज़माना मुझे तन्हा देखने का, तलबग़ार बहुत है
12
गुनेहगार को गले लगाकर इस कदर माफ किया
बेगुनाह भी चिल्ला उठे, हम भी गुनेहगार है
13
आंधियां शहर को महसूर किये देती हैं,
किसी मुफ़लिस ने कहीं शमां जलाई होगी ।।
14
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए
~ हफ़ीज़ जालंधरी
15
तुम्हारी राह में मिटटी के घर नहीं आते ।
इसीलिए तुम्हे हम नज़र नहीं आते ॥
मोहब्बतो के दिनों की यही खराबी है ।
ये रूठ जाएँ तो लौट कर नहीं आते ॥
जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझाने का ।
उन्ही के रोने में आंसू नज़र नहीं आते ॥
खुशी की आँख में आंसू की भी जगह रखना ।
बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते ॥
- वसीम बरेलवी
16
बस कोई उम्मीद दिला दो प्यार करते हो तुम भी,
इन्तजार तो फिर सारी उम्र कर लेगें हम भी।।
17
कहते हो जिन्हें दोस्त, बचो उन के करम से,
हर दोस्त नया ज़ख्म लगाने पे तुला है।।
18
तू मुझको मिटाने की कसम खा तो रहा है,
इसको न मगर भूल, मेरा भी ख़ुदा है ।।
19
उसे कहना बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती
बिछड़ जाना मुहब्बत की सदाकत की अलामत है
20
जब किसी जख्म से खून ना निकले
तो समझ लेना वह जख्म किसी अपने ने दिया है
जनाब नेभ साहब
21
मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही जहा से
अगर हो जाये यकीन के खुदा देख रहा है

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