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Showing posts from July, 2020

ROOH-E-SHAYRI ( A COOLECTION OF UNIQ SHAYARI )

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1 सौ सौ उम्मीदें बंधती है , इक-इक निगाह पर , मुझको न ऐसे प्यार से देखा करे कोई । 2 देख कर दर्द किसी और का जो आह दिल से निकल जाती है । बस इतनी सी बात तो आदमी को इंसान बनाती है ॥ Paavon mein yadi jaan ho toh manzil dur nahin Dil mein yadi sthan ho toh apne dur nahin 3 सुना है ज़ख़्म कैसा भी हो भर देता है वक़्त उस को हमारा ज़ख़्म अब तक वक़्त ने कितना भरा , देखें नलिनी विभा ' नाज़ली ' 4 हर जूते का भाग्य अलग अलग होता है  कभी-कभी मालिक उसका आपा खोता है ,  रहता पैर में ,  न जाने पहुंचे कब सिर  तक  जिसको जोर की पड़ती , केवल वो  रोता होता है 5 इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता कोई समझे तो एक बात कहूँ इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं फ़िराक़ गोरखपुरी 6 मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ.  एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ.. ~ Dushyant Kumar 7 जंगल जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को , कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को । म

SUFI - BUTKADA JISE KAHIYE - ~ हजरत शाह मंज़ूर आलम शाह “कलंदर मौजशाही”

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BUTKADA JISE KAHIYE बुतकदा जिसे कहिये ये ग़रीब ख़ाना है ! हम वफ़ा परस्तों का एक ही ठिकाना है !! नर्म नर्म सी ख़ुशबू जिस तरफ़ से आई है ! मस्तियों के डेरे का उस तरफ़ घराना है !! एक तीर ऐसा था चुभ के फिर नहीं निकला ! जिसको दिल नहीं भूला ये वही निशाना है   !! जिसने भी क़दम रक्खा उसकी चैन से गुज़री ! इस जुनूं के सेहरा में जाने ख्य ख़ज़ाना है !! माँगता नहीं है कुछ सिर्फ़ इतनी चाहत है !! दिल ग़रीब पा जाए आपसे जो पाना है !! ~ हजरत शाह मंज़ूर आलम शाह “ कलंदर मौजशाही ”

SUFI - बुत परस्त हो जाना इश्क की ज़रूरत है ~ हजरत शाह मंज़ूर आलम शाह “कलंदर मौजशाही”

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बुत परस्त हो जाना इश्क की ज़रूरत है ! मेरा सर हो क़दमों पर बस यही इबादत है !! मुझको नाज़ है इस पर मेरे दिल की दुनिया पर ! आप राज़ करते आपकी हुकूमत है !! मौजे मै है साग़र में दिलकशी सुराही में ! जो भी है करम सारा आपकी बदौलत है !! उनके हाथ से जिसने पी वो घर नहीं लौटा ! प्यास फिर नहीं बुझती बस यही कयामत है !! भूलती नही हरदम साथ साथ रहती है ! क्या बताऊँ दुनिया में एक ऐसी सूरत है !! ~ हजरत शाह मंज़ूर आलम शाह “कलंदर मौजशाही”

गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती

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श्रीरामचरितमानस एवं विनय पत्रिका जैसे महाकाव्यों के रचयिता एवं  हिंदी साहित्य के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर उन्हें  कोटि-कोटि नमन। श्री  राम  जय  राम  जय  जय  राम

ऊँ गुरूवे नम:

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ऊँ गुरूवे नम: " गुरू तत्व " एक ईकाई है , इसके पीछे जितने भी शून्य लगाते रहो , हर शून्य की अपनी अपनी जगह पर दस गुना कीमत हो जाती है , और यदि एक ईकाई के आगे जितने भी शून्य लगाते रहो , उसके हर शून्य की कीमत शून्य ही रहती है । कहने का अर्थ यह है कि , गुरू की वाणी को पीछे रहकर , जितना सुनेगें और आत्मसात करते रहेगें , उतना   ही दशांश में लाभ के भागी होगें अन्यथा जीवन में " गुरू तत्व " को जितना विस्मृत करते जायेगें और माया के अंश को जितना जीवन में लगाते जायेंगे , उतना ही जीवन का मूल्य शून्य होता जायेगा । ऐसे सतगुरु स्वरूप " गुरू तत्व " को बारम्बार स्मरण , ध्यान , वंदन , स्तुति और उस की शक्ति से प्राप्त मन से हर क्षण उसी का शुक्राना

और करो महिला पर भरोसा :: ( हँसी के सुंदर पल )

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:: और करो महिला पर भरोसा :: ( हँसी के सुंदर पल ) एक आदमी बड़े आराम से अपनी गाड़ी में जा रहा था कि अचानक सामने से आ रही एक महिला की गाड़ी आ कर उसकी गाड़ी से टकरा गयी … पर एक्सिडेंट के बाद भी , दोनों सुरक्षित बच गए। जब दोनों गाड़ी से बाहर आए तो महिला ने पहले अपनी गाड़ी को देखा जो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी , फिर वो सामने की तरफ गयी जहाँ आदमी भी अपनी गाड़ी को बड़ी गौर से देख रहा था। तभी वह महिला उससे रूबरू होते हुए बोली ~ देखिये कैसा संयोग है कि गाड़ियाँ पूरी तरह से टूट-फूट गयी पर हमें चोट तक नहीं आई ! यह सब भगवान की मर्जी से हुआ है ताकि हम दोनों मिल सकें | मुझे लगता है कि अब हमें आपस में दोस्ती कर लेनी चाहिए। आदमी ने भी सोचा कि इतना नुकसान होने के बाद भी गुस्सा करने के बजाय दोस्ती के लिए कह रही है तो कर लेता हूँ और बोला ~ आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं कि ये सब भगवान की मर्जी से हुआ है | तभी महिला ने कहा ~ एक चमत्कार और देखिये कि … पूरी गाड़ी टूट-फूट गयी पर अंदर रखी शराब की बोतल बिल्कुल सही है। आदमी ने कहा ~ वाकई … यह तो हैरान करने वाली बात

जब संस्कार अच्छे नहीं मिलते हैं तब ऐसे ही बच्चे निकलते हैं )

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मध्यप्रदेश मे हुक्का बार पर कल छापा पड़ा 30 लोग पकड़ाए हैं,15 लड़के और 15 लड़कियां। देखने वाली बात ये है कि लड़के मुसलमान है और लड़कियां हिन्दू हैं,एक भी मुस्लिम लड़की नहीं है यदि किसी को इस बारे में कुछ सोचना हो तो थोड़ा संतुलित दिमाग लगाकर सोचे..वरना जो चल रहा है,वो तो है ही। (ये हिन्दू समाज की वो लड़कियां हैं जो अपने यौन सुख के लिए अपने माँ बाप को भी गिरवीं रख दे | जब संस्कार अच्छे नहीं मिलते हैं तब ऐसे ही बच्चे निकलते हैं   )

NAMA TO OUR ABDUL QALAM AZAD

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अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलो।" - अब्दुल कलाम कुछ इसी तरह के विचार भारत रत्न अब्दुल कलाम जी ने हमसे साझा किए उन्होंने हमें खुली आंखों से स्वप्न देखने का सुझाव दिया । पुण्यतिथी पर विनम्र नमन

ROOH-E-SHAYARI ( आज के बेमिसाल २१ शेर )

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1 कोई समझे तो एक बात कहूँ,   इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं ।   ~ फ़िराक़ गोरखपुरी 2 चाटुकारिता पास नही है , सम्मान की आस नही है... l स्वाभिमान को गिरवी रखे , ऐसा मेरा इतिहास नही है... ll 3 चमकी बिजली सी पर न समझे हम हुस्न था या जमाल था क्या था - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी 4 इश्क़ है तो शक कैसा , ग़र नहीं है तो फिर हक कैसा..!! 5 लोगो से सुना है मोहब्बत आँखों से शुरू होती है , वो लोग भी दिल तोड़ जाते है जो पल्खें तक नहीं उठाते । 6 ना लफ़्ज़ों का लहू निकला ना किताबें ही बोल पाईं मेरे दर्द के दो ही गवाह थे दोनों  बेजुबां निकले 7   ना लफ़्ज़ों का लहू निकला ना किताबें ही बोल पाईं मेरे दर्द के दो ही गवाह थे दोनों  बेजुबां निकले 8   बैठकर साहिल पर यूं सोचता हूं आज कौन ज़्यादा मजबूर है , ये किनारा , जो चल नहीं सकता या वो लहर जो ठहर नहीं सकती . 9   सूरज हूँ ज़िंदगी की चमक़ छोड़ जाऊँगा मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा ~ इक़बाल साजिद 10  मेरी ग़रीबी ने उड़ाया है मेरी हर क़ाबिलियत का मज़ाक़ तेरी दौलत ने तेरे हर ऐब क

" मुझे अच्छा नही लगता "-शादीशुदा महिलाओ को कुछ बाते अच्छी नहीं लगती,

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" मुझे अच्छा नही लगता " शादीशुदा महिलाओ को कुछ बाते अच्छी नहीं लगती ,   पर वे किसी से कहती नहीं | उन्ही एहसासों को इकट्ठा करके एक कविता लिखी है | " मुझे अच्छा नही लगता " मैं रोज़ खाना पकाती हू , तुम्हे बहुत पयार से खिलाती हूं , पर तुम्हारे जूठे बर्तन उठाना मुझे अच्छा नही लगता कई वर्षो से हम तुम साथ रहते है , लाज़िम है कि कुछ मतभेद तो होगे , पर तुम्हारा बच्चों के सामने चिल्लाना मुझे अच्छा नही लगता हम दोनों को ही जब किसी फंक्शन मे जाना हो , तुम्हारा पहले कार मे बैठ कर यू हार्न बजाना मुझे अच्छा नही लगता जब मै शाम को काम से थक कर घर वापिस आती हू , तुम्हारा गीला तौलिया बिस्तर से उठाना मुझे अच्छा नही लगता माना कि तुम्हारी महबूबा थी वह कई बरसों पहले , पर अब उससे तुम्हारा घंटों बतियाना मुझे अच्छा नही लगता माना कि अब बच्चे हमारे कहने में नहीं है , पर उनके बिगड़ने का सारा इल्ज़ाम मुझ पर लगाना मुझे अच्छा नही लगता अभी पिछले वर्ष ही तो गई थी , यह कह कर तुम्हारा , मेरी राखी डाक से भिजवाना मुझे अच्छा नही लगता