इब्न-ए-मरियुम हुआ करे कोई- मिर्ज़ा ग़ालिब
IBNEY
MARIYAM HUA KARE KOI
इब्न-ए-मरियुम हुआ करे कोई
मेरे
दुःख की दवा करे कोई
चाल जैसे कड़ी कमां का तीर,
दिल मे ऐसे कि जा करे
कोई !
बात पर
वाँ ज़ुबान कटती है,
वह
कहें और सुना करे कोई !
बक रहा
हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ, हाय,
कुछ न
समझे खुदा करे कोई
न सुनो
गर बुरा कहे कोई,
न कहो
गर बुरा करे कोई !
रोक-लो
गर गलत करे कोई,
बख़्श
दो गर खता करे कोई !
कौन है
जो नहीं है हाजतमंद,
किसकी
हाजत रवा करे कोई !
जब
तवक़्क़ू ही उठ गई 'ग़ालिब',
क्यों
किसी का गिला करे कोई !
- मिर्ज़ा ग़ालिब
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