SUFI-BAAGH ME MAHABBAT KE FOOL MUSKRATE HAIN- HAZRAT MANZOOR AALAM SHAH 'KALANDAR MAUJSHAHI'


BAAGH ME MAHABBAT KE FOOL MUSKRATE HAIN

बाग़ में महब्बत के फूल मुस्कुराते हैं !
उनकी याद के बादल जब भी घिर के आते हैं !!

ग़म उन्हें ज़माने के याद फिर नहीं आते !
जिनके दिल की बसती में आप मुस्कराते हैं !!     

ले चलो वहीँ इसको दिल कहीं नहीं लगता !
ये उन्हीं के दर का है जो इसे जिलाते हैं !!

मैकदे के साए में जो पनाह पाए हों !
दैरो काबा वालों से दूर घर बनाते हैं !!

शोख़ है बहुत उनकी वो निगाहें मस्ताना !
जाने कितने ही अपनी तौबा भूल जाते हैं !!

~ हज़रत शाह मंज़ूर आलम "शाह


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