ROOH-E-SHAYARI ( AAJ KI SHAYARI)

1

इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह
2
दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शऊर'

दोस्ती अपनी जगह है शाएरी अपनी जगह
          -  अनवर शऊर
3
जितना चाहो उतना छुपा लो तुम इसे
एक न एक दिन तो  आम हो जाएगी
तेरे नाम  के कलमा  को पढ़ते  पढ़ते
देखना ज़िन्दगी की  शाम हो जाएगी
-  लक्ष्मण दावानी
4
बड़ी लंबी गुफ्तगू करनी है ।
तुम आना एक प्यारी सी जिंदगी ले कर ॥
5
यहाँ लोग अपनी गलतियाँ नहीं मानते ।
किसी को  अपना क्या मानेगे ॥
6
मैं तो चाहता हूँ हमेशा मासूम बने रहना ।
ये जो जिंदगी है समझदार किए जाती है ॥
- गुलज़ार
7
जिन्हे नींद नहीं आती उन्ही को मालूम है ।
सुबह आने मे कितने ज़माने लगते हैं ॥
8
मेरी फ़ितरत मे नहीं उन परिंदों से दोस्ती करना ।
जिन्हे हर किसी के साथ उड़ने का शौक है ॥
9
निगाहे-लुत्फ से इक बार मुझको देख लेते हैं,
मुझे बेचैन करना जब उन्हें मंजूर होता है ।
10
प्यार का इक पल सुहाना चाहता हूँ
गम  मिटा कर  मुस्कराना चाहता हूँ
दूर  कर  के  अँधेरे अब ज़िन्दगी से
आसमाँ  पर  जग मगाना चाहता हूँ
- लक्ष्मण दावानी
11
गुफ़्तुगू उनसे रोज़ होती है
मुद्दतों  सामना  नहीं होता
       - बशीर बद्र
12
मतलबी रिश्तेदारों से तो वो अजनबी बेहतर,
मोहब्बत जहाँ से मिल जाये अपने घर जैसी !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
13
तू मेरे क़त्ल की कोई नई तरकीब लेकर आ,
कि मैंने क़ातिलों के घर में भी रह कर के देखा है
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
14
कहाँ पर क्या 'हारना' है  ये ज़ज्बात जिसके अंदर है !
चाहे दुनियाँ फकीर समझे फिर भी वो ही  सिकंदर है !!
15
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें !
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो !!
16
बहुत छाले हैं उसके पैरों में !
कमबख़्त उसूलों पर चला होगा !!
- गुलज़ार
17
'सच' से ज्यादा 'अफवाह' पसंद करते लोग
अपनी 'झूठ' पर 'वाह-वाह' पसंद करते लोग
18
पीछे बँधे हैं हाथ मगर शर्त है सफ़र !
किससे कहें के पाँव का काँटा निकाल दे।
19
बड़ी अजीब सी बादशाही है, दोस्तों के प्यार में ।
ना उन्होंने कभी कैद में रखा, न हम कभी फरार हो पाए !!
20
कैसे करूँ खुद को, तेरे मुकाबिल ऐ ज़िंदगी !
हम जब तक आदतें बदलते हैं, तू हालात बदल देती है ।।
21
झूठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता
 पर डूबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने

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