SUFI - बाजै ले मुरलीया ता रूनुक झुनुक होला=-- हज़रत मंज़ूर आलम शाह 'कलंदर मौजशाही'


BAJE RE MURALIYA

बाजै ले मुरलीया ता रूनुक झुनुक होला
श्याम तोहरी नगरी मे मगन हुआ चोला

जो देखूँ सुरतिया तो जगर मगर होला
मैं तो निछावर-2 ,ई श्याम बड़ा भोला

निंदिया उचट जाई जाग जईहैं सजना
देखा हो पपीहा-2  ऐसे बोलिया न बोला

मैं पाँच गांठ हरदी तोहें दीहौं रंगरेजवा
की तार तार चुनरी-2 मे प्रेम रस घोला

ई घाट अब फिर कबहूं न मिलिहै
पिया की नगरिया-2 मे जनम दाग़ धोला      
-- हज़रत मंज़ूर आलम शाह
'कलंदर मौजशाही'

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