JAMAL-E-ISHQ ME DIWANA HO GAYA HUN MAIN -MAJAAZ LAKHNAVVI
JAMAL-E-ISHQ
ME DIWANA HO GAYA HUN MAIN
-MAJAAZ
LAKHNAVVI
जमाले
इश्क़ में दीवाना हो गया हूँ मैं,
ये
किसके हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं !
तुम्ही
हो वो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया,
बचा
सको तो बचा लो की डूबता हूँ मैं !
ये
मेरे इश्क़ की मजबूरियां मजाज़-अल्लाह,
तुम्हारा
राज़ तुम्ही से छुपा रहा हूँ मैं !
इस इक
हिजाब पे सौ बेहिजाबियाँ सदक़े,
जहां
से चाहता हूँ तुमको देखता हूँ मैं !
बताने
वाले बताते हैं वहीँ पर मंज़िल,
हज़ार
बार जहां से गुज़र चुका हूँ मैं !
कभी ये
ज़ोम कि तू मुझसे छिप नहीं सकता,
कभी ये
वहां की ख़ुद भी छिपा हुआ हूँ मैं !
मुझे
सुने न कोई मस्त बादा-ए-इशरत,
मजाज़
टूटे हुए दिल की एक सदा हूँ मैं !
- मजाज़ लखनवी
हिजाब-पर्दा, बेहिजायबियां - बिन पर्दा के
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