कहाँ तो तय था चराग़ाँ हरेक घर के लिए - Dushyant Kumar
Kahan
Tow Tay Tha Charagan - Dushyant Kumar
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हरेक घर के लिए !
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए !!
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है !
चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए !!
न हो कमीज़ तो घुटनो से पेट ढँक ले !!
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए !!
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही !
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए !!
वो मुतमईन हैं कि
पत्थर पिघल नहीं सकता !
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए !!
तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शाइर की !
ये एहतियात ज़रूरी है बहर के लिए !!
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले !
मरे तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए !!
~ दुष्यंत
कुमार
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