GHAZAL-NA KISI KI ANKH KA NOOR HUN - Bahadur Shah Zafar



NA KISI KI ANKH KA NOOR HUN
- Bahadur Shah Zafar

ना किसी की आँख का नूर हूँ,
न किसी के दिल का क़रार हूँ.
जो किसी के काम न आ सके,
मैं वो एक मुश्ते-ग़ुबार हूँ  

मेरा रंग रूप बिगड़ गया,
मेरा यार मुझसे बिछड़ गया,
जो चमक ख़िज़ाँ में उजड़ गया,
मैं उसी की फैसले बहार हूँ  

न तो मैं किसी का हबीब हूँ,
ना तो मैं किसी का रक़ीब हूँ,
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ,
जो उजड़ गया वो दयार हूँ  

पये-फ़ातिहा कोई आये क्यों,
कोई चार फूल चढ़ाये क्यूँ,
कोई आ के शम्मा जलाये क्यूँ,
मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ ।

-  बहादुर शाह ज़फर

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