DEKH TOW DIL KI JAAN SE UTHTA HAI ~ MEER TAQI MEER
DEKH
TOW DIL KI JAAN SE UTHTA HAI
MEER
TAQI MEER
देख तो दिल की जां से उठता है,
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है |
गोर किस दिल जले की है ये फ़लक
शोला यक़ सुभ्ह यां से उठता है |
नाला सर खींचता है जब मेरा
शोर
इक आसमाँ से उठता है
यूं उठे आह उस गली से हम,
जैसे कोई जहां से उठता है |
सुध ले घर की भी शोला-ए-आवाज,
दूद कुछ आशियाँ से उठता है |
बैठने कौन दे है फिर उसको,
जो तेरे आस्ताँ से उठता है |
इश्क़ एक मीर भारी पत्थर है,
कब ये तुझे नातवां से उठता है |
- मीर तक़ी मीर
गोर - क़ब्र , नालान = फरियाद, दूद = धुआँ ,
नातवाँ = कमज़ोर
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