AYE MOHABBAT TERE ANJAM PE RONA AAYA - शकील बदायूनी
ग़ज़ल - शकील बदायूनी
AYE
MOHABBAT TERE ANJAM PE RONA AAYA
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया !
यूं तो हर शाम उम्मीदों पे गुज़र जाती थी,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया !
कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला,
मंज़िले-इश्क़ से हर गाम पे रोना आया !
मुझपे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी,
इस क़दर गर्दिशे अय्याम पे रोना आया,
जब हुआ ज़िक्र ज़माने मे मुहब्बत का शकील,
मुझको अपने दिले-नाकाम पे रोना आया !
- शकील बदायूनी
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