SUFI - BUTKADA JISE KAHIYE - ~ हजरत शाह मंज़ूर आलम शाह “कलंदर मौजशाही”


BUTKADA JISE KAHIYE

बुतकदा जिसे कहिये ये ग़रीब ख़ाना है !
हम वफ़ा परस्तों का एक ही ठिकाना है !!

नर्म नर्म सी ख़ुशबू जिस तरफ़ से आई है !
मस्तियों के डेरे का उस तरफ़ घराना है !!

एक तीर ऐसा था चुभ के फिर नहीं निकला !
जिसको दिल नहीं भूला ये वही निशाना है  !!

जिसने भी क़दम रक्खा उसकी चैन से गुज़री !
इस जुनूं के सेहरा में जाने ख्य ख़ज़ाना है !!

माँगता नहीं है कुछ सिर्फ़ इतनी चाहत है !!
दिल ग़रीब पा जाए आपसे जो पाना है !!

~ हजरत शाह मंज़ूर आलम शाह कलंदर मौजशाही


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