GHAZAL-LA RAHA HAI MAY KOI SHEESE ME-SHAQEEL BADAYUNI
LA RAHA HAI MAY KOI SHEESE ME
ला रहा है मय कोई शीशे मे
ला रहा है मय कोई शीशे मे भर के सामने,
किस क़दर पुरक़ैफ मंज़र है नज़र के सामने।
अलअमां ज़ौके तमाशा की करिश्माकारियाँ,
कुछ नहीं है और सब कुछ है नज़र के सामने ।
मैं तो इस आलम को क्या से क्या बना देता मगर,
किसकी चलती है हयाते-मुख्त्सर के सामने ।
फिर न देना ताना-ए-नाकामिए ज़ौक़े-नज़र,
हौसला है कुछ तो आ जाओ नज़र के सामने ।
आह ये रूदादे-हंगामे-तरब ऐ ग़मगुसार,
ज़िक्रे-गुलशन जैसे इक बे-बालो-पर के सामने ।
हो चुका अब खात्मा सारी उम्मीदों का तो फिर,
जा रहे हो क्यूँ 'शकील' उस फ़ितनागर के सामने ।
- शकील बदायुनी
पुरक़ैफ - नशे से भरपूर / अलअमां - ख़ुदा की पनाह
ज़ौके तमाशा - तमाशा देखने का
चाव / करिश्माकारियाँ - चमत्कार करना
हयाते-मुख्त्सर - संक्षिप्त जीवन /
ताना-ए-नाकामिए ज़ौक़े-नज़र = दृष्टि की असफलता के सामने
रूदादे-हंगामे-तरब = खुशी के हंगामे की कहानी
ग़मगुसार = हमदर्द, बे बालो - पंख विहीन
फ़ितनागर = झगड़ालू
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